1.5°C एक साधारण तापमान या Climate Change का महाविनाश
Nikita Sharma
The Earth is in fever
क्या आप जानते हैं कि आज के समय में दुनिया के सामने सबसे बड़ी समस्या Climate Change है जो मानवता को सीधी चुनौती दे रही है। पृथ्वी का औसत तापमान 1.5°C से बढ़ गया है। वर्ष 2024 इतिहास का सबसे गर्म वर्ष रहा है और तापमान में लगातार वृद्धि के कारण 2025 भी इतिहास का सबसे गर्म वर्ष होने का रिकॉर्ड बनाएगा। अफ़सोस की बात यह है कि सरकार इस मुद्दे पर ना ही कोई बड़ा कदम उठा रही है और ना इस मुद्दे पर बात कर रही है। आम जनता भी इस महाप्रलय के समय में कोई जगरूपता नहीं दिखा रही जिनको Climate Change सबसे पहले प्रभावित करने वाला है।
Impact of Climate Change on the poor
जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वर्ष 2015 में दुनिया भर के देशों द्वारा एक ऐतिहासिक और कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय समझौता किया गया था जिसे “पेरिस समझौता” Paris Agreement के नाम से जाना जाता है। इस समझौते में कुल 194 देशों ने मिलकर यह दृढ़ संकल्प लिया था कि 2030 तक कार्बन के उत्सर्जन में लगभग 43% तक की कमी की जाएगी और वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5°C से नीचे रखा जाएगा। 1.5°C कोई साधरण नंबर नहीं है बल्कि तापमान की वृद्धि बहुत ख़तरनाक एक आंकड़ा है। यह समझौता 4 नवंबर 2016 को औपचारिक रूप से लागू किया गया था। इस सीमा को 2030 तक के लिए तय किया गया था, परंतु हमारी लापरवाही के कारण हमने 2025 में ही सामान्य से अधिक 1.5°C तापमान को पार कर लिया है। 17 नवंबर 2023 को पहली बार वैश्विक औसत तापमान 1.5°C से ऊपर दर्ज किया गया। इसके बाद वर्ष 2024 जनवरी से लेकर दिसंबर तक का वैश्विक औसत तापमान 1.52°C रहा, जो अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा है। संयुक्त राष्ट्र की IPCC (Intergovernmental Panel on Climate Change) की रिपोर्ट के अनुसार, 2°C तापमान वृद्धि को एक घातक और विनाशकारी मापदंड माना गया है और वैश्विक औसत तापमान को 1.5°C के भीतर बनाए रखने की चेतावनी दी गई है। पृथ्वी के वायुमंडल में कार्बन की सघनता लगातार बढ़ रही है और इसके साथ ही तापमान में भी वृद्धि हो रही है। यदि यह क्रम यूं ही चलता रहा तो आने वाले वर्षों या कुछ दशकों में तापमान 2°C तक बढ़ जाने की सम्भावना है जिसके बाद पृथ्वी के विनाश होने से कोई ताकत नहीं बचा सकती।
भारत में एक बहुत बड़ी आबादी भूखे सोते हैं, जिनके पास खाने के लिए भोजन नहीं रहता। ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) की रिपोर्ट के मुताबिक भारत की कुल 13.7% आबादी कुपोषित है, जिसका मतलब यह है कि लगभग 19.5 करोड़ लोगों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता। ज़रा सोचिए इनका क्या होगा ये तो वैसे भी मरने वाले हैं पर हमारा क्या होगा? खेतों में फसलें उगाना बंद कर देंगी सीधी बात यह है कि भूखे हम भी मरने वाले हैं। पीने तक के लिए पानी नहीं बचेगा तो खेती करने के लिए पानी कहां से लाएंगे? आज के समय में क्लाइमेट चेंज पर कोई बात नहीं कर रहा। लोग बढ़ती गर्मी को महसूस तो कर रहे है पर इसके पीछे की वजह को जानने की बिल्कुल कोशिश नहीं कर रहे बल्कि अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए पृथ्वी के विनाश की ओर तेज़ी से क़दम बढ़ा रहे है। इस आपातकालीन समय में सरकार को बड़े कदम उठाने की बहुत ज़रूरत है साथ ही आम जनता को भी अब जागरूकता दिखाने का समय आ गया है। ज़्यादा से ज़्यादा कार्बन के उत्सर्जन को कम करने की ज़रूरत है। विकास के नाम पर जंगलों और पहाड़ो को काटना बंद करना होगा और जनसंख्या वृद्धि पर कड़े कदम उठाने होंगे। हम ऐसे विकास का क्या करेंगे जब पृथ्वी रहने लायक ही नहीं बचेगी। अफ़सोस हम अपने बच्चों को बेहतर जीवन नहीं बल्कि Climate Crisis देकर जाएंगे।
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