जलवायु परिवर्तन (Climate Change) क्या होता है,
जलवायु परिवर्तन या “Climate Change” ये शब्द से सभी लोग भली-भांति परिचित है, तिसरी कक्षा से ही हमारे पाठ्यक्रमो में जलवायु परिवर्तन के बारे में देखने को मिलता है| हमारे सामने एक बहुत बड़ी चुनौति आ खड़ी है पर आज के समय में आम आदमी ना ही जलवायु परिवर्तन के प्रति जगरूपता दिखा रहा है और ना ही कोई इस महत्तवपूर्ण विषय पर चर्चा कर रहा है समय आ गया है Climate Change के प्रति हर किसी को जागरूक होने की और पृथ्वी के प्रति और अपने मुलभुत कर्तव्य के प्रति महत्तवपूर्ण कदम उठाने की आइये जानते हैं सबसे पहले Climate Change होता क्या है,
क्या आप जानते हो पिछला दस साल अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा है और यह आकड़ा प्रति वर्ष बढता ही जा रहा है और पृथ्वी का औसत तापमान लगभग 1.2 डिग्री से बढ़ गया है| तापमान के बढ़ने से पृथ्वी के वायुमंडल में ऊर्जा का स्तर भी उतनी ही बढेगा अब वो ऊर्जा अलग-अलग तारिको से अपने आप को अभिवक्त करेगी, जिससे गर्मी तो बढ़ेगी ही साथ ही साथ ज्यादा बारिश, ज्यादा तूफान, बर्फ बड़ी मात्रा में पिघलेगी जिसकी वजह से नदियो में बाढ़ भी बहुत ज्यादा आएगी, बहुत-सी नदियाँ सुख जाएगी और रेगिस्तान फैल जाएगा। Climate Change प्राकृतिक कारणों से भी हो सकता है, जिनमें सूर्य की गतिविधि में बदलाव या बड़े ज्वालामुखी विस्फोट शामिल हैं लेकिन कई दशक से मानविय गतिविधियां जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण है|
जलवायु परिवर्तन से होने वाले प्रभाव
Climate Change से होने वाले प्रभावो को हम अपने आस-पास बड़ी आसानी से देख सकते हैं और बढ़ते उत्सर्जन के साथ स्थिति और बद से बदतर होती जाएगी:
बर्फ का पिघलना: पृथ्वी के तापमान में वृद्धि के कारण आर्कटिक, अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड के बर्फ के चादरों का द्रव्यमान काफी कम हो गया है जिससे प्रति वर्ष औसातन 150 से 280 बिलियन टन बर्फ पिघल रही है। इतना ही नहीं अशंका यह जतायी जा रही है कि आने वाले वर्षों में कुछ ग्लेशियर हमेशा के लिए गायब होने वाले हैं। जैसे-जैसे ग्लेशियर पिघलेंगे वैसे-वैसे बर्फ के नीचे की मिट्टी और चट्टानें सूरज की रोशनी के सीधे संपर्क में आएंगे जो ऊष्मा के अच्छे अवशोषक होते हैं तो वो गर्म होगी तो बर्फ और पिघलेगा और जब बर्फ पिघलेगा तो चट्टानें और ज्यादा एक्सपोज होगी जिससे वह और ज्यादा सूरज की रोशनी अवशोषित करेंगी बर्फ और ज्यादा पिघलेगी और यह Negative Feedback Cycle चलाता ही जाएगा|
तापमान में लगातार वृद्धि: पिछले दस वर्षों में धरती के तापमान में असाधारण वृद्धि हुई है। विश्व मौसम संगठन की ताज़ा रिपोर्ट से पता चलता है कि पिछला दशक अब तक का सबसे गर्म दशक रहा है। तापमान में वृद्धि का कारण कार्बन-डाई-ऑक्साइड, मिथेन, नाइट्रस-ऑक्साइड, पानी की भाप, क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन और ओजोन आदि गैस है, इन्हें ग्रीन हाउस गैस कहते हैं, इनकी सांद्रता में लगातार वृद्धि से हो रही है। ये गैसे पृथ्वी पर सूर्य से आने वाली विकिरण को वायुमंडल से बाहर नहीं जाने देती जिससे पृथ्वी का पर्यावरण गर्म होने लगता है। इस प्रक्रिया को ग्रीन हाउस प्रभाव के नाम से जाना जाता है।
मौसम में परिवर्तन: Climate Change के कारण मौसम में भी कई तरीके के बदलाव होते हैं। बहुत ज्यादा बारिश का होना, नदियों में बाढ़ का बढ़ना, तूफ़ान का अधिक तीव्र और बार-बार आना ये सब जलवायु परिवर्तन का प्रभाव हमें देखने को मिल जाता है। तापमान के बढ़ने से अधिक नमी वाष्पित होती है जिससे ये सब घटनाएँ परिणित होती हैं। मौसम के बदलने से सबसे बड़ा भाग कृषिवर्ग प्रभावित होगा। फसल उगाने के लिए हमें अनुकूल वातावरण की ज़रूरत होती है। अधिक तापमान, अधिक वर्षा और तूफ़ान फसल के उत्पादन में भारी गिरावट ला सकते हैं। लोगों के सामने भुखमरी जैसी बहुत बड़ी समस्या आ खड़ी होगी। नदियों में बाढ़ के आने से कई लोगों का निवास स्थान जलमग्न हो जाएगा, साथ ही साथ उनकी आजीविका भी नष्ट हो जाएगी। मौसम के बदलने से स्वास्थ्य संबंधी कई बीमारियाँ जन्म लेंगी जिससे जान जाने का भी ख़तरा हो सकता है।
प्रजातियो का विलुप्त होना: प्रतिदिन 50 से 250 जानवरों की, कीट-पतंगों की और पेड़-पौधों की प्रजातियाँ हमेशा के लिए विलुप्त होती जा रही हैं। इसका एक बहुत बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन (Climate Change) है। तापमान में हो रही लगातार वृद्धि से कई प्रजातियाँ और पेड़-पौधे विलुप्त हो रहे हैं। ऐसी बहुत-सी प्रजातियाँ हैं जो इतने उच्च तापमान को झेलने में सक्षम नहीं हैं और वे हमेशा के लिए विलुप्त होते जा रहे है। ग्लेशियर के पिघलने से पोलर बियर अपना घर खो रहे हैं और भोजन की कमी से भूखे मर रहे हैं। जलवायु परिवर्तन से आने वाले समय में सैकड़ों प्रजातियाँ हमेशा के लिए विलुप्त विलुप्त होने के कगार पर खड़ी है|
जलवायु परिवर्तन के कारण
जलवायु में हो रहे परिवर्तन का कारण हमारी ही गतिविधियाँ हैं जिन्हें हम बिना परिणाम की परवाह किए अनदेखा कर रहे हैं| आइए जानते हैं वो मानवीय गतिविधियाँ कौन-कौन सी हैं,
ग्लोबल वार्मिंग: Global Warming का मतलब पृथ्वी के औसत तापमान में लगातार हो रही वृद्धि से है। तापमान में वृद्धि का मुख्य कारण बेहोशी में किए जा रहे इंसानी गतिविधियाँ हैं। कार्बन-डाइ-ऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस-ऑक्साइड, वॉटर वेपर, क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन और ओज़ोन ये सभी गैसें ग्रीनहाउस गैसें कहलाती हैं, जिनकी सघनता वायुमंडल में बढ़ती जा रही है। ये गैसें सूर्य से आने वाली विकिरणों को पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर नहीं जाने देतीं तथा पृथ्वी के वातावरण को गर्म कर देती हैं, जिससे तापमान में वृद्धि होती है। इस प्रक्रिया को ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं।
जीवाश्म ईंधनों का जलना, जंगलों की कटाई, पशुपालन, गाड़ियों और फैक्ट्रियों से ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं। इससे तापमान बढ़ता है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने तापमान वृद्धि को 2°C को एक घातक मापदंड माना है और तापमान को इससे नीचे रखने को कहा है पर अब स्थिति यह है कि तापमान 1 से 1.5 डिग्री हो चुका है और 2°C पर रोक पाना असंभव सा हो गया है।
पशुधन खेती: पशुपालन भी Climate Change का बहुत बड़ा कारण है। मीथेन गैस, कार्बन-डाई-ऑक्साइड से 20 गुना ज़्यादा ग्रीनहाउस प्रभाव करती है। मीथेन गैस का उत्पादन उन जानवरों से होता है, जिनको आप पालते हो खाने के लिए और फिर उनसे दूध, दही, पनीर जैसी चीज़ों के लिए करते हो। हम यह नहीं जानते कि 70% खेती सिर्फ जानवरों के लिए अन्न व चारा उगाने के लिए किया जाता है। खेती करने के लिए जगहों की ज़रूरत होती है, जिसकी वजह से जंगलों की कटाई की जा है। जंगल तो काटे ही जा रहे हैं साथ ही वहाँ रहने वाली प्रजातियाँ भी विलुप्त हो रही हैं और बहुत से जानवर बेघर हो रहे हैं।
विकास: विकास के नाम पर ऐसी बहुत सी मानवीय प्रक्रियाएँ की जा रही हैं जो Climate Chnage को सीधे चेतावनी दे रही हैं। पहाड़ों के जंगलों की हो रही कटाई से भूस्खलन, बाढ़ की संभावना, जंगली जीवों की विलुप्ति, भूकंप आदि समस्याएँ देखने को मिल रही हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में सड़क का चौड़ीकरण, रेलमार्ग का निर्माण, हाउसिंग और हॉस्पिटैलिटी, बाँध व विभिन्न प्रकार की विकास योजनाओं पर काम किया जा रहा है, जिसकी वजह से आज हमारे सामने Climate Change जैसी बड़ी समस्या आ खड़ी हुई है। सड़कों आदि के निर्माण के लिए उन पहाड़ी जंगलों की अंधाधुंध कटाई हो रही है जो पहाड़ों को बाँधे रखते थे। पेड़ों की कटाई होने से कार्बन-डाई-ऑक्साइड को अवशोषित करने की क्षमता में कमी आएगी ही साथ ही पहले से जो संग्रहित कार्बन-डाई-ऑक्साइड भी वायुमंडल में फैल जाएगा।
Climate Change का समाधान
Climate Change के समाधान के रूप में सरकारें जो कदम उठा रही हैं, वह लगभग असफल ही जा रहा है। तापमान दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है, जंगलों की कटाई और बढ़ती ही जा रही है। वायुमंडल में CO2 की मात्रा बढ़ती ही जा रही है। दिल्ली जैसे शहरों की हालत तो सब जानते ही हैं सांस लेने तक के लिए हवा नहीं बची है। आम आदमी ऐसे बेहोश है जैसे कुछ हो ही नहीं रहा। आज क्लाइमेट चेंज को लेकर ना ही सरकारें कोई बड़े कदम उठा रही हैं और ना ही आम नागरिक जागरूकता दिखा रहा है। जीवों की प्रजातियाँ तो हर दिन विलुप्त हो रही हैं और वह दिन भी आएगा जब इंसान भी पृथ्वी पर नहीं बचेंगे। मरेंगे तो सब बस कुछ अभी तड़प-तड़प कर मर रहे हैं और कुछ आने वाले कुछ सालों में मरेंगे, बचेगा तो कोई नहीं। क्लाइमेट चेंज का मुद्दा भले ही निराशाजनक लगे लेकिन फिर भी उम्मीद है, चलिए जानते हैं कौन-से वह तरीके हैं जिससे Climate Change में सुधार लाया जा सकता है:
1. इंसान की आबादी
Climate Change का एक बहुत बड़ा कारण जनसंख्या में हो रही वृद्धि है। भारत आज दुनिया का सबसे ज़्यादा आबादी वाला देश बन गया है। सरकार जनसंख्या रोकने में बिल्कुल असफल है और तब तक असफल रहेगी जब तक आम इंसान जनसंख्या वृद्धि को लेकर और इससे जलवायु में हो रहे बदलाव को पहचान न ले, जागरूक न हो जाए। एक बच्चा अपने जीवनकाल में (मान लीजिए 70 साल) में लगभग 300-500 टन CO2 का उत्सर्जन करता है। इतनी CO2 को न्यूट्रल करने के लिए लगभग 300-500 पेड़ चाहिए जो कि 50 साल तक ज़िंदा रहें। यह लगभग असंभव सी बात है कि एक व्यक्ति के लिए 300-500 पेड़ हों जो 50 साल तक ज़िंदा रहें। आज के समय में सरकारों की योजनाओं द्वारा वृक्षारोपण तो किया जा रहा है पर वह लंबे समय तक ज़िंदा नहीं रहते सूख जाते हैं। पृथ्वी के पास संसाधन खत्म हो गए हैं, अब एक और बच्चा पृथ्वी सहन नहीं कर सकती। अपनी संसाधन पूर्ति के लिए हम जंगलों में हस्तक्षेप कर रहे हैं, दूसरों जीवों के घर छीन रहे हैं, उनका जीवन छीन रहे हैं जो बिल्कुल असहाय और निर्दोष हैं।
2. जगरूपता और जीवन शैली में बदलाव
इस आपातकालीन समय में सरकार से आम जनता को Climate Change के प्रति जागरूक होना पड़ेगा। हर आम आदमी को यह पता होना चाहिए कि बिना मौसम बारिश कोई संयोग नहीं बल्कि लंबे समय से पर्यावरण में हो रहे परिवर्तन से है, क्लाइमेट चेंज से है। नीचे कुछ समाधान दिए गए हैं जिस पर काम किया जा सकता है,
A. वृक्षारोपण: वनों का संरक्षण बस जानने की बात नहीं है, अब वनों को बचाना बहुत ज़रूरी हो गया है, साथ ही नए वनों का निर्माण भी बहुत आवश्यक है। वनों का मतलब सिर्फ़ पेड़ों के होने भर से नहीं होता जब तक वहाँ बायोडायवर्सिटी फल-फूल न पाए।
B. उपभोग: जिस तरीके से पृथ्वी का उपयोग किया जा रहा है, अब पृथ्वी के पास उतने संसाधन उपलब्ध नहीं हैं। हमें अपनी संसाधनों को पूरा करने के लिए ऐसी कई पृथ्वियों की ज़रूरत पड़ेगी। हमारी जो औसत वैश्विक उपभोग है, उसको पूरा करने के लिए 1.75 और पृथ्वियों की ज़रूरत पड़ेगी और यह आंकड़ा हम अमेरिका, चीन, जापान जैसे विकसित देशों की नहीं, भारत जैसे देश की कर रहे हैं। अमेरिका की बात करें तो 5 और पृथ्वियों की ज़रूरत पड़ेगी। बात सोचने की है, मुद्दा बहुत गंभीर है। हमें अपने उपभोग को कम करना पड़ेगा, ख़ासकर भारत को, जिसकी आबादी दुनिया में सबसे ज़्यादा है।