Greenwashing क्या होता है? जानिए इसके पीछे की चौकाने वाली सच्चाई

आजकल ज्यादातर कंपनियां अपने आप को Eco-Friendly और पर्यावरण अनुकूल उत्पादों के होने का दावा करती जबकि सच्चाई कुछ और ही होती है . Greenwashing की मार्केटिंग तकनीक का इस्तेमाल करके पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार होने का भ्रम पैदा किया जाता है और अपने प्रोडक्ट की बिक्री बढाया जाता है. इस आर्टिकल में जानेंगे Greenwashing क्या होता है? इसके मुख्य उदाहरण क्या है और इससे कैसे बचा सकता है?

Greenwashing क्या होता है?

Greenwashing क्या होता है
Greenwashing के विरुद्ध खड़े होने का समय आ गया है

 

Greenwashing एक ऐसी मार्केटिंग रणनीति होती है जिसमे कंपनिया अपने प्रोडक्ट या ब्रांड को पर्यावरण के प्रति अनुकूल होने की गलत जानकारियां देती है. इस रणनीति की सहायता से उपभोक्ताओ को आकर्षित करके उनके प्रति सकारात्मक छवि बनाते है और स्वयं को प्रकृति के प्रति जिम्मेदार बताते है जबकि वास्तव में सच्चाई कुछ और ही होती है. कोई कंपनी गलत तरीको से अपने उत्पादों या ब्रांड को वास्तविकता से अधिक हरित बताते है इसीलिए Greenwashing को अपमानजनक और भ्रामक माना जाता है. अक्सर एनजीओ उन कम्पनियों की निंदा करती है जो पर्यावरण संबंधी चिंताओं का दावा करती हैं जबकि उनकी गतिविधियाँ इसके विपरीत पर्यावरण को नुकसान पहुचाते है.

Greenwashing के 5 मुख्य उदाहरण 

1. Volkswagen Greenwashing

Volkswagen दुनिया की सबसे बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी है जबकि इसे Greenwashing के इतिहास में एक सबसे बड़े घोटाले के रूप में जाना है. वोक्सवैगन ने यह दावा किया था की उनके डीजल वाहन पर्यावरण के अनुकूल है और कम प्रदुषण करते है लेकिन Device Emission Test के दौरान Pollution लेवल को कृत्रिम रूप से कम दिखता है और उनके वाहन 40 गुना  ज्यादा NOx (Nitrogen oxide) प्रदूषित कर रहे थे. हालाँकि कंपनी पर $30 बिलियन डॉलर से ज्यादा का जुर्माना लगाया गया और कई उच्च पदस्थ अधिकारियो को भी गिरफ्तार किया गया. इससे केवल ग्राहकों का विश्वास नही टूटा बल्कि कंपनी ने अपना भविष्य भी खो दिया.

2. “We Plant Trees” कैंपेन का दिखावा

We Plant Trees कैंपेन कई कंपनिया द्वारा उपयोग किया जाने वाला मार्केटिंग स्ट्रेटेजी है जो Greenwashing का एक अच्छा उदाहरण है. कंपनिया इन शब्दों का प्रयोग करती है जैसे कि “हर खरीद पर एक पेड़ लगाते है, “Buy1= We Plant 1Tree, “Every Click Helps the Planet और ग्राहकों को आकर्षित करती है जबकि असलियत में पेड़ कहाँ लगाये है और कितने पेड़ जिन्दा है इसका कोई प्रमाण उपलब्ध नही रहता है. कंपनी का उद्देश्य होता है कि ग्राहक को प्रकृतिप्रेमी महसूस कराकर उत्पाद खरीदने के लिए Guilt Free बनाते है भले ही उनके उत्पाद या Packaging खुद पर्यावरण को हानि पहुंचाते हो.

3. Recycle आधारित Greenwashing

रीसायकल के नाम पर की जाने बहुत साधारण Greenwashing आजकल बहुत प्रचलित है.आजकल कंपनिया या ब्रांड अपने प्रोडक्ट को Recyclable, Eco-Friendly या Sustainable बताकर लोगो को गुमराह कर रही है. प्रोडक्ट या उसकी Packaging को रीसायकल करना महंगा या मुश्किल होता है तो इसे ही Recycle Greenwashing कहते है. प्लास्टिक बोतल जिनमे केवल 10-20% ही रीसाइकल्ड प्लास्टिक होते है लेकिन लेबल पर गहरे अक्षरों में Made Recycled Plastic लिखा होता है.

कई प्रोडक्ट पर 100% Recyclable लिखा होता है लेकिन मिक्स मल्टी लेयर प्लास्टिक को कोई रीसाइक्लिंग फैसिलिटी स्वीकार नही करती है. कई प्रोडक्ट के Packaging ऐसी होती है कि जिसे रीसायकल करना संभव ही नही होता है. लोगो को Recycled Products के नाम पर Greenwashing तो होती ही है साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान पहुचाया जाता है.

4. हरित लक्ष्य या Green Goals आधारित Greenwashing

सरकार या संगठन द्वारा हरित लक्ष्य आधारित Greenwashing एक वैश्विक स्तर पर चिंताजनक मुद्दा बन चुका है. सरकार या संगठन पर्यावरण को बचाने के लिए Net-Zero, Carbon Neutral, या Green Development जैसी वादे तो कर रही है लेकिन असल में उनकी रणनीति बजट और कार्यप्रणाली बिल्कुल सफल होती नही दिखाई दे रही है. यह Greenwashing का बड़ा मुद्दा है जिसके दुष्परिणाम हम क्लाइमेट चेंज जैसे संकटो के रूप में देख रहे है. भारत देश द्वारा घोषित Net-Zero by 2070 लक्ष्य को कई पर्यावरण विशेषज्ञों ने Greenwashing at the National level कहा है.

कई अन्य देशो ने 2050 तक नेट-जीरो की घोषणा की जबकि यह भी बहुत दुर का समय है. Carbon Emission लगातार बढ़ता ही जा रहा है और जलवायु वैज्ञानिको का कहना है कि अगर 2050 से पहले नेट-जीरो नही किया गया तो 1.5°C लक्ष्य चुक जायेगा. सरकारे कई ग्रीन प्रोजेक्ट तो चलाती है लेकिन उनका बजट आवश्यकता से कम रहता है. भारत के इलेक्ट्रिसिटी की बात करे तो भारत सरकार रिन्यूएबल एनर्जी की तो बात कर रही है लेकिन अभी भी 70% इलेक्ट्रिसिटी ऊर्जा उत्पादन कोयला (Fossil Fuel) जलाकर किया जाता है जोकि पर्यावरण को बहुत अधिक प्रभावित करती है.

5. ग्राफिक्स के ज़रिये Greenwashing

आजकल कई कंपनिया या संगठन अपने प्रोजेक्ट, वेबसाइट, विज्ञापन या पैकेजिंग के लिए हरे रंग, पत्तियां, पृथ्वी, पेड़, पानी या रीसायकल के तस्वीरों का प्रयोग करते है ताकि वे एको-फ्रेंडली लगे भले ही वास्तव में इसका प्रकृति से कोई सम्बन्ध न हो. हरे रंग का इस्तेमाल करके उत्पाद को प्राकृतिक या सुरक्षित दर्शाते है जबकि उसको बनाने में टॉक्सिक केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है. यहा तक की Recycles Symbols का दुरूपयोग उन प्रोडक्ट पर किया जाता है जो रीसायकल होते भी नहीं है. हरे रंग की पैकिंग, रीसायकल सिंबल या पेड़ की फोटो का मतलब यह नही होता की उत्पाद Environmental-Friendly हो यह सिर्फ लोगो की मानसिकता को प्रभावित करने की रणनीति होती है.

Greenwashing: Graphix के ज़रिये उपभोक्ताओ को भ्रम में रखा जाता है.

 

Greenwashing से बचने के उपाय

Greenwashing क्या होता है यह जानना बहुत आवश्यक है तभी Greenwashing से बचा जाना संभव है. यदि Greenwashing चल रही होती है तो अक्सर कम्पनी या संगठन के द्वारा किये जा रहे दावो का समर्थन में कोई सक्ख साबुत नही मिलता है. यहाँ आप जानेंगे की वास्तव में कोई कंपनी प्रथाओ में शामिल है या नही? 

  • एक जिम्मेदार उपभोक्ता बनकर Greenwashing से बचा जाना संभव है. प्रोडक्ट खरीदने से पहले उसके लेबल को ध्यान से पढ़े और एको-फ्रेंडली, नेचुरल या ग्रीन जैसे शब्दों से सावधान रहे. अगर प्रोडक्ट पर Plant-Based, Clean Energy या Net-Zero जैसे शब्द लिखे हो तो आप उस कंपनी की वेबसाइट पर Sustainability Report की जाँच कर सकते है.

  • सौदर्य प्रसाधनो में अक्सर किसी प्राकृतिक घटक पर जोर दिया जाता है ताकि उत्पाद प्राकृतिक अवयवो से बना हुआ लगे और लोगो को भ्रम पैदा हो की प्रोडक्ट में अन्य हानिकारक अवयवो का इस्तेमाल नही किया है. ऐसे Beauty Product से सावधान रहे जो केवल पैकेजिंग पर ध्यान केन्द्रित करता हो उत्पाद में क्या है इस बात में कोई स्पष्टता नही देती हो.

  • कोई कंपनी या ब्रांड अपने पैकेजिंग पर Recycled, Natural, Earth-Friendly या Eco-Certified जैसे लेबलो का इस्तेमाल करता है परन्तु इसके पीछे कोई प्रमाणित संस्था या बैध मानक नही होता है. हरे रंग का प्रयोग करके लोगो को भ्रम में रखा जाता है  भले ही पैकेजिंग हरे रंग की पट्टी या बिंदु का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन अन्दर उत्पाद हानिकारक केमिकल के अवयवो से मिलकर बना हो सकता है. कुछ ब्रांड पर्यावरण प्रेमी होने का दावा करने के लिए लेवल को खुद बनाते है जिसका कोई क़ानूनी मूल्य नही होता है.

  • Greenwashing से बचने के लिए जागरूपता सबसे प्रभावी सुझावों में से एक है. लोग जब Greenwashing को पहचानना सिख जायेंगे तो कंपनिया ऐसे रणनीति को अपनाने में विचार करेंगी. उपभोक्ताओ को पता होग की Eco-Friendly, Green और Natural जैसे शब्दों का प्रयोग गुमराह करने के लिए किया जाता है तो Greenwashing को पहचान सकते है. उदहारण के लिए जैसे अगर कोई शैम्पू पर 100% नेचुरल या Plant-Based हो लेकिन उसके Ingredient  List में टॉक्सिक सल्फेट है तो जागरूक उपभोक्ता उसे पकड़ लेगा और Greenwashing से बच जायेगा.

Extinction Rebellion के प्रदर्शनकारियों ने ग्लासगो, UK में Greenwashing विरोध में प्रदर्शन किया था.

 

Green Marketing और Greenwashing में अंतर

ग्रीन मार्केटिंग और ग्रीनवाशिंग दोनों ही मार्केटिंग की रणनीति होती है जिनमे पर्यावरणीय दावे शामिल होते है. ग्रीन मार्केटिंग को Sustainability के नाम से भी जाना जाता है. इनमे ऐसे उत्पादों या ब्रांडो का प्रचार शामिल होते है जो वास्तव में पर्यावरण के लिए फायदेमंद होते है. Green Marketing एको-फ्रेंडली होने का पारदर्शी जानकारी देता है इनके पास मानी प्रमाणपत्र जैसे ECOERT, FSC, Energy Star होते है. यह भरोशा, पारदर्शिता और जिम्मेदारी की सच्चे दावे की घोषणा करता है. ग्रीन मार्केटिंग सच बोलकर बिक्री बढाता है. उदाहरण के लिए जब कोई 90% Plant-Based Ingredient  का दावा करता है तो उनके पैकेजिंग Biodegradable होते है और कंपनी के वेबसाइट पर इसकी लैब टेस्टेड रिपोर्ट भी उपलब्ध रहता है.

जबकि Greenwashing की बात करे तो यह केवल पर्यावरण के नाम पर झूठा दिखावा करते है ताकि उपभोक्ता उनके प्रोडक्ट खरीद सके. Greenwashing में कंपनी के पास कोई मानी प्रमाण नही होता है और एको-फ्रेंडली, ग्रीन, नेचुरल जैसे शब्दों का दुरूपयोग करते है.

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कार्बन फुटप्रिंट मूल्यांकन: Greenwashing को रोकने की पहली इमानदार शुरुआत 

कार्बन फुटप्रिंट मूल्यांकन (Carbon Footprint Assessment) करना Greenwashing को रोकने की एक अच्छी पहल हो सकती है. कार्बन फुटप्रिंट मूल्यांकन एक ऐसी प्रक्रिया होती है जिसमे किसी व्यक्ति, उत्पाद या कंपनियों द्वारा उत्पन्न किये गए कुल ग्रीन हाउस गैसों (ख़ासकर Co2) को मापा जाता है. जब कंपनिया अपनी असली कार्बन फुटप्रिंट मापती है तो उससे पता चलता है की वह पर्यावरण को कितना प्रभावित करती है और उसे छुपाया नही जा सकता है. कार्बन फुटप्रिंट मूल्यांकन से जैसे Eco-Friendly, Green, Plant-Based का झूठा दावा संभव नही रह पता है.

अक्सर कंपनिया दावा करती है की वह पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार है लेकिन जब उनका डेटा देखा जाता है तो सच और झूठ साफ़ पता चलने लगता है. कार्बन फुटप्रिंट मूल्यांकन करने से यह पर्यावरण में भी काफी सुधार होने की सम्भावना है. जब कम्पनिया कार्बन रिपोर्ट को सामने लाती है तो इससे कंपनी पर लोगो का भरोशा तो बढ़ता ही है साथ ही Greenwashing को रोकने में सहायता होता है.

निष्कर्ष: पर्यावरण को अनुकूल बनाये रखना एक महत्वपूर्ण विषय बन गया है. कई कंपनिया या ब्रांड कार्बन एमिशन को कम करने, रीसाइक्लिंग, कचरे को कम करने और रिन्यूएबल एनर्जी जैसे पहल को उपयोग में ला रही है और पर्यावरण के अनुकूल बनने पर ध्यान केन्द्रित कर रही है जबकि कुछ कम्पनिया ऐसी भी है जो सिर्फ पर्यावरण के अनुकूल होने का दावा करती है वास्तव में Greenwashing की अनैतिक प्रथा को अपनाकर उपभोक्ताओ और निवेशको को भ्रमित करती है.

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