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GDP-Climate Change Relationship: कैसे हमारी तरक्की की आग में भविष्य झुलस रहा है

GDP-Climate Change Relationship

GDP-Climate Change Relationship: कैसे हमारी तरक्की की आग में भविष्य झुलस रहा है

GDP-Climate Change Relationship: कैसे हमारी तरक्की की आग में भविष्य झुलस रहा है, 

दुनियाभर की सरकारे सिर्फ इस बात पर विचार करने में लगी है की GDP (Gross Domestic Product) को और कैसे बढ़ाया जाए इस बात पर कोई विचार नहीं कर रहा की GDP की आग में पृथ्वी झुलस रही है. वर्तमान समय में दुनिया की सबसे बड़ी चुनौती Climate Change है जिसका एक बहुत बड़ा कारण GDP में हो रही वृद्धि है. Climate Change की बात करे तो सरकार इस विषय पर मौन है और आम जनता को भी इस बात की भनक तक नही है की हम कितने बड़े समस्या में आ खड़े है. विकास की हवास में हमने पूरी पृथ्वी को खाना शुरू कर दिया है. आइये जानते है GDP-Climate Change Relationship: कैसे हमारी तरक्की की आग में भविष्य झुलस रहा है |

 

सबसे पहले जानना जरुरी है GDP होता क्या है? 

GDP एक देश की आर्थिक सेहत का पैमाना होता है। जिससे यह पता चलता है की एक साल में कुल मिलाकर कितने सामान और सेवाएँ बनाई और बेची गईं। मान लीजिये भारत में किसान, फैक्ट्री, स्कूल, अस्पताल और दुकानदार सभी ने साल भर में जो कुछ भी बनाया जैसे की गेहूं, कपड़े, दवाइयाँ, सेवाएँ आदि और बेचा उनकी कुल कीमत जोड़ने पर जो किमत आती है वही भारत की GDP (Gross Domestic Product) कहलाती है. GDP में सिर्फ देश के अन्दर बने सामानों को शामिल किया जाता है और इससे पता चलता की देश की आर्थिक तरक्की हो रही है. भारत की GDP की बात करे तो 2025 में वैश्विक स्तर पर चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गयी है, भारत की नाममात्र GDP लगभग $4.19 ट्रिलियन है जो जापान को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की शीर्ष 10 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में अपना स्थान बना लिया है. भारत देश के विकास के लिए यह बहुत अच्छी खबर साबित होती है पर अब सवाल है की GDP कैसे Climate Change को आमंत्रण दे रहा है?

 

GDP-Climate Change Relationship: कैसे GDP जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा दे रहा है?

GDP-Climate Change Relationship आग में घी जैसे इस संबध को जानते ही नही जो पृथ्वी की हालत बद-से-बदतर कर रहा है. जब हम GDP की बात करते है तो प्राकृतिक संसाधनों की क्षति और प्रदुषण का कोई हिसाब नही होता. कॉर्बन-डाई-ऑक्साइड 280 PPA से बढ़कर 450 PPA हो गयी इसका हिसाब कोई कंपनी या किसी देश से नही लिया जाता है. GDP को बढ़ाने के लिए देशो में अनियंत्रित कृषि विस्तार को प्राथमिकता दी जा रही है जिससे वनों की कटाई हो रही है. पहाड़ो के जंगलो को काटा जा रहा है ताकि वहां पर विकास किया जा सके. पहाड़ी इलाको में बड़े-बड़े सुरंग, सड़को का चौड़ीकरण, रेलमार्ग और पर्यटकों के लिए होटल, रेस्तरां बनाने के लिए पहाड़ो और पहाड़ी जंगलो की कटाई तेजी से की जा रही है. इससे विकास तो हो जायेगा और GDP भी बढ़ जायेगा पर उन पहाड़ो, उन जगलो और उन जंगली जानवरों का क्या इसपर कोई सवाल नही उठा रहा. भारत की ऊर्जा का लगभग 70% कोयला पर आधारित है जो सबसे बड़ा Green House Gas उत्सर्जन का स्त्रोत है और कोयले के उत्पादन की बात करे तो खनन की प्रक्रिया और तेजी से किया जा रहा है जिसका कोई Environmental Costing नही किया जा रहा.

किसी देश की GDP बढ़ती है तो औद्योगिक उत्पादन, ऊर्जा की मांग, परिवहन और उपभोक्ताओ की खपत बढ़ती है और यह उत्पादन और खपत ज्यादातर जीवाश्म इंधनों जैसे कोयला, तेल और गैस पर आधारित होती है. जिसका परिणाम यह निकलता है कि वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों जैसे CO2, CH4 और NO2 का उत्सर्जन भी बढ़ने लगता है. GDP बढ़ाने के लिए गावों का तेजी से शहरीकरण किया जा रहा है जैसे सड़के, इमारते और कारखानों पर जोर दिया जा रहा है. विकास के नाम पर पेड़ो की कटायी, हरे-भरे क्षेत्रो का नाश कर दिया जा रहा है जिससे वातावरण मे कार्बन की मात्रा बढ़ती है.

GDP-Climate Change Relationship: GDP का नीचे जाना Environment के लिए अच्छी खबर

GDP-Climate Change Relationship: GDP का नीचे जाना Environment के लिए अच्छी खबर

हम इस बात पर कभी ध्यान नही देते की जब भी जीडीपी निचे गई है तब Environment के लिए अच्छी खबर साबित हुयी है. 2020 में जब Covid-19 की वजह से Lockdown हुआ था तो उपभोक्ताओ के मांग में गिरावट हुयी थी जिससे देश की Economy निचे गिरी थी पर साथ ही पर्यावरण की बात करे तो 2018 के मुकाबले मार्च 2020 में पर्यावरण में काफ़ी सुधार देखने को मिला. Corban Emission को कम करना एक चुनौती भरा काम है सरकारे CO2 की मात्रा कम करने के लिए बहुत-सी योजनाओ पर काम कर रही है पर अफ़सोस CO2 की मात्रा दिन-प्रतिदिन बढती ही जा रही है. जानकर हैरानी होगी की Lockdown ने यह काम कर दिखाया था. सड़को पर गाड़ियाँ बहुत कम हो गई थी कई फैक्ट्रिया बंद कर दी गई थी जिससे वायुमंडल में Corban की मात्रा में कमी आई थी. आसमान, नदिया काफ़ी साफ़ हो गई थी हवाओ की बात करे तो हवाए इतनी साफ़ हो गई थी की जलंधर से दूर 140Km हिमालयो की पहाड़िया भी देखने लगी थी जो वहां के लोगो के लिए एक अश्चर्यजनक बात थी पर जैसे ही Lockdown हटाया गया फिर से वातावरण की वही हालत हो गई. Pollution Level फिर से बढ़ गया. CO2, CH4 और NO2 जैसे ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा फिर से बढ़ना शुरू हो गया. इस घटना ये तर्क तो लगाया जा सकता है की Climate Change के जिम्मेदार और कोई नही हम लोग ही है. अगर स्तिथि सुधारनी है तो सरकार को इस गंभीर विषय पर बड़ा कदम उठाना पड़ेगा और नागरिको को भी जागरूपता दिखाना पड़ेगा साथ ही GDP-Climate Change Relationship पर गहरा विचार करना पड़ेगा.

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