बढ़ती आधुनिकता के इस दौर में फैशन भी तेजी से बदल रहा है, हर हफ्ते नए कलेक्शन कम दाम में आसानी से मिल जाते है सोशल मिडिया पर वायरल ट्रेंड्स सबको फॉलो करने होते है लेकिन हम कभी यह नही सोचते है कि इस चमक-दमक वाली दुनिया हमारी पृथ्वी को कितना नुकसान पहुंचा रही है? Fast Fashion और Climate Change के विनाशकारी सम्बन्ध को समझना बहुत आवश्यक है ख़ासकर आज के युवा पीढियों को जिनके हाथ में सुरक्षित भविष्य की जिम्मेदारी है इस लेख में हम जानेंगे कि फ़ास्ट फैशन क्या होता है? और यह पर्यावरण को कैसे बर्बाद क़र रहा है?
फास्ट फैशन एक ऐसी फैशन इंडस्ट्री का बिजनेस मॉडल है, जिसमें कपड़ो को कम दामों में और बहुत तेजी से बनाए जाते है जिन्हें बाजारों में सस्ते दामों में सभी लोगो को उपलब्ध कराए जाते है ताकि हर कोई ट्रेंड के हिसाब से सस्ते कपड़ो को खरीद सके और ट्रेंड्स को फॉलो कर सके। यह कपड़े दिखने में फैशनेबल होते हैं और जल्दी खराब भी जाते है, इनके रंग भी धुलाई के बाद फीके या जल्दी चले जाते है।
इन कपड़ो को मशहूर ब्रांड और सेलिब्रिटीज़ द्वारा प्रेरित होकर बनाया जाता है, जिस कारण लोगो में ऐसे कपड़ों की माँग बढ़ती ही रही है। Zara, H&M, Shein आदि कंपनियां हर हफ्ते नए कलेक्शन लेकर आती है इनकी उपलब्धता ऑनलाइन और ऑफलाइन स्टोर्स होने के कारण आसानी से लोगो तक पहुंच जाती है। इन कपड़ों को सस्ते कपड़ों से तैयार किया जाता है जो डिस्पोजेबल के समान उपयोग किया जाता है और खरीदो, पहनो और बर्बाद करो के मॉडलों को मज़बूत करता है ऐसे में पृथ्वी के संसाधनों का उपयोग सिर्फ कुछ समय के ट्रेंड को फॉलो करने में उपयोग किया जा रहा है, जिसका परिणाम हम पृथ्वी को जलवायु परिवर्तन, Extreme Weather Events जैसे रोगों के रूप में दे रहे है।
एलेन मैकआर्थर फाउंडेशन ने अपनी रिपोर्ट मे बताया कि, पीछले कुछ वर्षों में कपड़ो का उत्पादन लगभग दोगुना हो गया है बल्कि पुराने कपड़ो को पहनने की दर में लगभग 40% की कमी आयी है। जिससे यह सीधा पता चलता है कि हम दूसरों को देखकर या ट्रेंड फॉलो करने के लिए जरूरत से ज्यादा कपड़े खरीदते है और बहुत जल्दी ही उनको फेंक भी देते हैं यहीं खरीदो, पहनो और बर्बाद करो मॉडल पर्यावरण पर सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव डाल रहा है।
फ़ास्ट फ़ैशन के पीछे न केवल भारी मात्रा में पानी की खपत होती है, बल्कि यह प्रदूषण का भी एक बड़ा कारण है। हम अक्सर केवल सस्ते और आकर्षक कपड़ों को देखते हैं, लेकिन इनके पीछे छिपी वास्तविक पर्यावरणीय कीमत को ना तो देख पाते हैं और ना ही हमें दिखाई या बताई जाती है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं,
एक कॉटन शर्ट बनाने में लगभग 2,500 लीटर पानी लगता है यानी की एक शर्ट बनाने के लिए उतना पानी चाहिए जितना एक इंसान 2.5 साल तक पीने में इस्तेमाल करता है। ऐसे ही एक जीन्स बनाने के लिए लगभग 7,500–10,000 लीटर पानी लगता है। यह इतना पानी है जिससे एक इंसान 7–10 साल तक अपनी पीने की ज़रूरत पूरी कर सकता है। अब सोचिये ज़रा हर साल दुनिया में 4 अरब जीन्स बनती हैं, तो कल्पना कीजिए कितने अरब लीटर पानी केवल एक ही प्रोडक्ट पर खर्च हो रहा है।
ऐसे ही कपड़ो को रंगने और धोने में भी नदियों और झीलों का पानी इस्तेमाल किया जाता है , रंगाई (Dyeing) के बाद पानी में केमिकल्स, टॉक्सिक डाई और माइक्रोप्लास्टिक मिल जाते हैं जो नदियों को बुरी तरह से प्रभावित करते है इसका वर्तमान उदाहरण, बांग्लादेश की बुरीगंगा नदी और चीन की पर्ल रिवर है|
United Nations की रिपोर्ट के अनुसार, फैशन इंडस्ट्री पूरी दुनिया के औद्योगिक पानी प्रदूषण का लगभग 20% हिस्सा अकेले करती है। अगर यही रफ्तार रही, तो 2030 तक दुनिया में पीने योग्य पानी की भारी कमी हो सकती है जिसका प्रभाव सबसे पहले उन लोगों पर जो अभी के समय में ही पानी की समस्या से जूझ रहे है|
2. कपड़े और कार्बन उत्सर्जन
Fast Fashion और Climate Change का सम्बन्ध जितना हम जानते है उससे कही अधिक गहरा है. फ़ास्ट फैशन कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) और अन्य ग्रीनहाउस गैसों का भी बड़ा स्रोत है जो Climate Change का कारण है. कपड़ो को फसल (जैसे कॉटन) से लेकर प्रोसेसिंग, डाईंग और मशीनरी चलाने में कोयला, गैस और बिजली का भारी इस्तेमाल किया जाता है| पॉलिएस्टर जैसे सिंथेटिक कपड़े पेट्रोलियम से बनते हैं जिनका कार्बन फुटप्रिंट बहुत ज्यादा है, जो हमें बाजारों में बड़े आसानी से मिल जाता है।
आइये उदाहरण से समझते है,
सिर्फ एक कॉटन शर्ट बनाने में लगभग 2–3 किलो CO₂ उत्सर्जित होता है और एक जीन्स बनाने में करीब 33 किलो CO₂ निकलता है ,जो उतना ही है जितना एक कार 120 किलोमीटर चलने पर उत्सर्जित करती है। यानि की इससे निष्कर्ष निकला जा सकता है कि फ़ास्ट फैशन न सिर्फ जल संकट का बड़ा कारण बल्कि यह सीधे-सीधे जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा देता है।
Fast Fashion और Climate Change को अंजाम बड़े-बड़े ब्रांडो द्वारा दिया जा रहा है|
3. फास्ट फैशन और “Use & Throw” कल्चर
आजकल कपड़ो को ज़्यादा दिनों तक चलाने के बजाय, लोग उन्हें कुछ ही बार पहनकर फेंक देते हैं, इसे ही “Use & Throw Culture” कहते हैं, यह ट्रेंड कपड़ो को लेकर पूरी मानसिकता को ही बदल दिया है|
उदाहरण के लिए,
लोग पार्टी के लिए नया ड्रेस खरीदते है और Instagram पर फोटो डालते है और फिर उसे दोबारा पहनना पसंद नही करते या कभी पहनते ही नहीं है. ऐसे में हर साल दुनिया भर में करीब 92 मिलियन टन कपड़े कचरे में फेंके दिए जाते हैं और इनमें से 85% कपड़े लैंडफिल या जलाने में चले जाते हैं। जिसपर हम कभी विचार ही नही करते है, Polyester जैसे सिंथेटिक फैब्रिक की बात करे तो इसको सड़ने में सैकड़ों साल लगते हैं यानी की हम सिर्फ अपने थोड़े समय की ख़ुशी के लिए सैकड़ों साल का कचरा कर देते है|
4. सिंथेटिक कपड़े और माइक्रोप्लास्टिक
सिंथेटिक कपड़े जैसे Polyester, Nylon, Acrylic से बनते है यह काफ़ी सस्ते और ट्रेंडी होता है फास्ट फैशन में ज्यादातर इन्ही कपड़ो का इस्तेमाल किया जाता है | दुनिया में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला फाइबर Polyester है और फास्ट फैशन में 60% से ज्यादा कपड़े इसी से बनते हैं। सिंथेटिक कपड़े प्लास्टिक बेस्ड कपड़े होते हैं यानी की यह कभी पूरी तरह degrade नहीं होते।
सिंथेटिक कपड़ो की धुलाई होती है तो उनसे छोटे-छोटे प्लास्टिक के कण (microfibers) निकलते हैं जो नदियों और समुन्द्र में पहुँच जाते है और उन्हें गन्दा करते है यह कण छोटे होने के कारण सीवेज ट्रीटमेंट से भी नहीं रुकते और सीधा नदियों व समुद्र में पहुँच जाते हैं। यह माइक्रोप्लास्टिक समुन्द्र की फ़ूड चैन को नुकसान पहुचती है| रिसर्च में पाया गया है की यह माइक्रोप्लास्टिक समुन्द्री नमक(Sea Salt) में पाया जाने लगा है और पीने के भी पानी में माइक्रोप्लास्टिक पाया गया है|
ऐसे में हमें पॉलिएस्टर जैसे सिंथेटिक कपड़ो का इस्तेमाल कम करना चाहिए इसका प्रभाव केवल पर्यावरण पर ही नही बल्कि मानव स्वास्थ्य पर पड़ता है| फास्ट फैशन के सिंथेटिक कपड़े सस्ते जरूर हैं, लेकिन यह हमारे समुद्र, भोजन और सेहत में अदृश्य प्लास्टिक का ज़हर मिला रहे हैं। Fast Fashion और Climate Change के गहरे रिश्तो को जानने और समझने की ज़रूरत है जब दुनिया भर के देश जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक अपदायों का सामने कर रही है|