Eco-Friendly गणपति: पर्यावरण और परम्परा का अनूठा संगम

भारत में गणेश चतुर्थी केवल त्यौहार नही बल्कि भावनाओ और आस्थाओ का उत्सव के रूप में मनाया जाता है प्रतिवर्ष गणपति बाप्पा को लोग अपने घरो, मोहल्लो के पंडालो में स्थापित करते है यह उत्सव 11 दिनों तक लोगो में उत्साह का संचार करता है लेकिन हम प्रकृति को भी भूलना नही चाहिए जो हमें जीवन देती है. Eco-Friendly गणपति पर्यावरण को नुकसान नही पहुचाता है बल्कि यह हमें प्रकृति के और करीब लाता है.

हर साल मूर्तियों को बनने में प्लास्टिक ऑफ़ पेरिस और जहरीले केमिल्कल का इस्तेमाल किया जाता है तथा मूर्तियों को नदियों झीलों और समुन्द्रो में विसर्जित कर दिया जाता है जिससे पानी गन्दा हो जाता है और उनमे रहने वाले जलीव जीव मर जाते है. पर्यावरण के भारी नुकसान को अनदेखा करना हमारी आस्था पर सवाल खड़ा करते है,

इसलिए लोगो में Eco-Friendly गणपति के प्रति रुझान तेजी से बढ़ रहा है जो आस्था के साथ-साथ पर्यावरण के प्रति अपने जिम्मेदारी को निभाने में पीछे नही रहेंगे. इस लेख में हम जानेंगे की Eco-Friendly गणपति क्या होता है और इससे पर्यावरण को कैसे बचाया जा सकता है?

Eco-Friendly गणपति क्या होता है?

Eco-friendly गणपति ऐसी मूर्तियां होती है जो प्राकृतिक, बायोडिग्रेडेबल और हानिरहित सामग्री से बनाई जाती हैं और इनके सजावट के लिए प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया जाता है. Eco-friendly गणपति को मिट्टी गोबर, पेपर माशे, हल्दी, गेरू आदि से बनाया जाता है, मूर्तियों की रंगाई के लिए हल्दी, चंदन, हिना, प्राकृतिक खनिजो का उपयोग किया जाता है साथ ही सजावट के लिए फूल, पत्तियां, कपड़े, बांस, नारियल के पत्ते आदि का उपयोग किया जाता है यह प्राकतिक होते है ऐसे मूर्तियों को घर पर किसी टब या बाल्टी में विर्सजन कर सकते है और शेष मिट्टी को पौधों में पुनः उपयोग किया जा सकता है. नदियों में भी Eco-friendly गणपति के विसर्जन से विशेष हानि नही पहुचती है इन चीजों को इस्तेमाल करके हम त्यौहारो के महत्व को और गहराई दे सकते है.

Eco-Friendly गणपति: पर्यावरण और परम्परा का अनूठा पहल की शुरुआत

Eco-friendly गणपति के फ़ायदे

दस दिवसीय विघ्नहर्ता के उत्सव के उल्लास में हम यह सवाल करना भूल ही जाते है कि हम गणेश चतुर्थी क्यों मनाते हैं? आखिर भगवान अपने भक्तों से चाहते क्या है? गणपति बाप्पा को भक्तों के विश्वास और अटूट भक्ति का प्रदर्शन पसंद है लेकिन वह निश्चित रूप से इससे होने वाले शोर, जल प्रदूषण और  पर्यावरण को किसी भी तरीके के नुकसान की सराहना नहीं करते हैं।

इसलिए हमें जानना बहुत जरुरी है कि Eco-friendly गणपति के साथ गणेश चतुर्थी को मनाना क्यों महत्वपूर्ण है:

1.पानी प्रदूषण में कमी

गणेश चतुर्थी में मूर्तियों को पानी में विसर्जित करने की परम्परा शादियों से चली आ रही है ऐसे में प्लास्टर ऑफ पेरिस और अन्य हानिकारक केमिकल से बनी मूर्तियाँ पानी को गन्दा करती है और उसमें रहने वालो जीवो को नुकसान पहुचती है. Eco-friendly गणपति 100% प्राकृतिक मिट्टी से बनाया जाता है जो पानी में आसानी से घुल जाती है और जलीय जीवन को किसी भी प्रकार से नुकसान नही पहुचाती है.

2. जलीय जीवन की सुरक्षा

साधारण मुर्तिया को जल में प्रवाहित करने से उनसे निकलने वाले जहरीले रसायन जल के पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करती है जिससे जल में पाए जाने वाले जल निकाय, मछलियाँ और अन्य जलीय जीव मर जाते हैEco-friendly गणपति की मूर्तियों के साथ त्योहार को मनाने से समुद्री जीवन को हानिकारक पदार्थों से बचाया जा सकता है।

3. स्थानीय कारीगरों को बढ़ावा

Eco-friendly गणपति मूर्तियों को अक्सर स्थानीय कारीगरों और शिल्पकारों द्वारा तैयार किया जाता हैं। इन मूर्तियों की खरीद से न सिर्फ़ उनको आर्थिक लाभ होता है बल्कि पारंपरिक मिट्टी-शिल्प कला भी जीवित रहती है। जब हम स्थानीय कारीगरों का समर्थन करते हैं तो यह उनके परिवार की आजीविका सुरक्षित करने के साथ-साथ उस क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान को भी मजबुत बनाये रखता है।

4. पर्यावरण जागरूकता

वर्तमान समय में पर्यावरण की विनाशकारी घटनायों जैसे जलवायु परिवर्तन, चरम मौसम की घटनाये, बाढ, ग्लोबल वार्मिंग आदि को अनदेखा नही कर सकते है ऐसे में हमें Eco-friendly गणपति के साथ उत्सव को मनाने की जरुरत है जिससे लोगो में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता पैदा करने में मदद मिलेगी है। यह एक प्रेरणा बनती है।यह एक प्रेरणा के रूप में आने वाली पीढ़ियों में भी पर्यावरण संरक्षण की महत्त्व को बनाये रखने की आदत डालती है.

5. कार्बन फुटप्रिंट में कमी

बड़ी-बड़ी मूर्तियों को लाने में परिवहन में होने वाला ईंधन ज्यादा खर्च और बड़े पंडालो को सजाने में बिजली की लागत भी अधिक होता है जिससे कार्बन फुटप्रिंट बढ़ता है. Eco-friendly गणपति मूर्तियां और सजावट बनाने में आमतौर पर स्थानीय, प्राकृतिक और बायोडिग्रेडेबल सामग्री का उपयोग होता है जिन्हें दूर-दराज से लाने की ज़रूरत नहीं पड़ती है जो कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद करता है और जलवायु परिवर्तन से लड़ने और अधिक टिकाऊ जीवनशैली को बढ़ावा देने में मदद करता है।

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Eco-friendly गणपति कैसे अपनाएं?

आप स्थानीय लोकल मार्केट, शिल्पकारो या Online website- Flipkart, amazon. Green Practices India आदि जगहों से शाडू मिट्टी की मूर्ति लें सकते है। सजावट के लिए प्राकृतिक सामग्री का उपयोग करिए जैसे- फुल, पेड़ों की पत्तियाँ, कपडे, बांस, मिट्टी के दिये और मोमबत्तियां आदि। मुर्तियों को पेंट या रंगने के लिए हल्दी, चंदन, गेरु, फूलो की पंखुड़ियों का इस्तेमाल करें जोकि पूरी तरह प्राकृतिक है। मूर्ति विसर्जन के लिए घर पर ही बाल्टी या टब का प्रयोग कर सकते हैं शेष मिट्टी को गमले या बागीचे मे डाल सकते है जो खाद का काम करेगा। आप सार्वननिक स्थानो जलाशयों में भी मिट्टी की मूर्ति का विसर्जन कर सकते है जो कुछ घंटों में घुलकर मिट्टी का हिस्सा बन जाती हैं।

FAQs (सबसे ज्यादा पूछे गए सवाल)

Ecofriendly गणपति कहाँ से खरीदा जा सकता है?

Eco-Friendly Ganapati की मूर्तियों को आप अपने स्थानीय क्षेत्रो या सीधे शिल्पकारों से सम्पर्क करके बनावा सकते है।

इन मुर्तियों को Eco Sree Ganesh Arts, Tree Ganesha, Green Practices, My Eco Ganesh, Flipkart, Amazon जैसे Online साइटों से भी मंगवा सकते हैं।

Eco-Friendly Ganapati अपनाने में चुनौतियाँ क्या है ?

ये मुर्तियां प्राकृतिक सामग्री और हाथों से बने होने के कारण इनका दाम थोड़ा ज्यादा हो सकता है। यह मुर्तियाँ कुछ जगहों पर उपलब्ध नहीं होती है और ये  मुर्तियों नाजुक होने के कारण इनको ज्यादा सावधानी की जरुरत होती है. Eco-Friendly Ganapati के प्रति जागरूपता कम है यह अन्य मूर्तियों की तुलना में ज्यादा आकर्षक और भड़कीली नहीं होती जिससे इनको कम लोग ही खरीदते है।

क्या जनता Eco-Friendly गणपति अपनाने के लिए जागरूक हो रही है?

हाँ, बढ़ते पर्यावरणीय संकटों को देखते हुए लोगो में प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी का अनुभव जागृत हो रहा है, जिसके परिणामवश लोगो मे Eco- Friendly गणेश चतुर्थी मनाने में रुचि के बढ़ी रही है। उदा०- मुंबई, और पुणे, बेगलुरु की ग्रीन गणेश मंडल, स्कूलों में इनोवेटिव प्रयास आदि ।

निष्कर्ष: Eco-Friendly गणपति अपनाना अब सिर्फ एक ट्रेंड नहीं बल्कि पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी को भी निभाता है। ऐसे ही छोटे-छोटे प्रयासो से हम त्योहारों को और भी अर्थपूर्ण बना सकते है जो हमारी आस्था और पर्यावरण दोनो की रक्षा करता है तथा आने वाले पीढ़ियों को भी त्योहारे और प्रकृति के सही महत्व को समझा सकते है।

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