भारत में बायोडायवर्सिटी लॉस: कारण, चुनौती और स्थानीय समाधान

भारत अपने समृद्ध और विविध पारिस्थिकी तंत्रों के लिए जाना जाता है, परन्तु वर्तमान समय में भारत अपने बायोडायवर्सिटी लॉस को कम करने के लिए  गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है. यहाँ विशाल हिमालय पर्वतों से लेकर सुंदरवन के मैंग्रोव जंगलो तक, असंख्य प्रकार की वनस्पतियां, जानवर और सुक्ष्म जीव पाए जाते है, लेकिन पिछले कुछ दशको में भारत के जैव-विविधता में विभिन्न कारको के कारण तेजी से गिरावट आई है, जोकि गंभीर पर्यावरणीय संकट और आर्थिक संकटों की ओर इशारा करती है. जैव-विविधता को बचाने के लिए सबसे पहले इसके महत्त्व को समझना बहुत आवश्यक है जो जैव-विविधता सरंक्षण की दिशा में पहला कदम है. इस लेख में हम जानेंगे की बायोडायवर्सिटी लॉस क्या है और इसको रोकना क्यों आवश्यक है?

बायोडायवर्सिटी लॉस क्या होता है?

जब पृथ्वी पर पाए जाने वाले जीवों की प्रजातियों, उनके पर्यावरण और परिस्थतिक तंत्रों मे कमी या विभिन्न कारको से विनाश होने लगता है तो उसे बायोडायवर्सिडी लॉस या “जैव विविधता” कहा जाता है इसका प्रभाव ना केवल प्रकृति पर बल्कि मानव जीवन, स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है। बायोडायवर्सिडी लॉस भारत समेत विभिन्न अन्य देशों के सामने एक जटिल समस्या बन चुका है। इसपर विचार और पर्यावरण संरक्षण के प्रति कदम बढ़ाने की बहुत अधिक आवश्यकता है।

भारत में बायोडायवर्सिटी की स्थिती

भारत में लगभग 8% वैश्विक बायोडायवर्सिटी पायी जाती है, यहाँ 45,000 से ज्यादा वनस्पति प्रजातियाँ और 90,000 से ज़्यादा पशु प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिसमे बंगाल टाइगर, एशियाई हाथी, गंगा डॉल्फिन, हिमालयन स्नो लेपर्ड, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, लाल पांडा, गंगेटिक मगरमच्छ (घड़ियाल) और सिंघम (एशियाटिक लॉयन) आदि शामिल है. यहाँ का बायोडायवर्सिटी अनोखा और आकर्षक है जो पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने साथ-साथ हमारे संसाधनों की पूर्ति करने में भी विशेष भूमिका निभाता है.

लेकिन पीछले दशको में भारत में बायोडायवर्सिटी लॉस का दर तेजी से बढ़ा है जोकि एक गंभीर चिंता का विषय है, भारत में चार बायोडायवर्सिटी हॉटस्पॉट- पश्चिमी घाट, हिमालय, भारत-बर्मा क्षेत्र और सुंदरलैंड (अंडमान-निकोबार द्वीप समूह) के अंतर्गत आने वाले 90 प्रतिशत क्षेत्र को खो दिया है। जिनमे भारत-बर्मा सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्रो में से एक है. यहाँ वनस्पति का विस्तार 2,373,057 वर्ग किलोमीटर से घटकर मात्र 118,653 वर्ग किलोमीटर रह गया है यानी की 95 प्रतिशत का नुकसान हुआ है. इन हॉटस्पॉट क्षेत्रों से अब तक 25 प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं।

IUCN (अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ) की रिपोर्ट के अनुसार, वह भारत की 1,212 पशु प्रजातियों पर नजर रखता है। इनमें से 12% से ज्यादा प्रजातियाँ खतरे में हैं यानी कि ये प्रजातियाँ कभी भी विलुप्त हो सकती हैं। भारत में इन संकटग्रस्त प्रजातियों में स्तनधारी 69, उभयचर 456 और सरीसृप 23 शामिल है. भारत में बायोडायवर्सिटी लॉस के गंभीर समस्या को समझने और इससे निपटने के लिए निरंतर प्रयासों और नवीन समाधानों की ओर ध्यान केन्द्रित करता है।

भारत में बायोडायवर्सिटी लॉस भयावह रूप ले रहा है.

भारत में बायोडायवर्सिटी लॉस के मुख्य कारण 

भारत में बायोडायवर्सिटी लॉस के कई कारणों से हो सकता है यहाँ कुछ मुख्य कारणों पर प्रकाश डालेंगे जो निम्नलिखित रूप से है:

1. वनों की कटाई और आवास विनाश 

भारत की बायोडायवर्सिटी लॉस के प्रमुख कारणों में से एक बड़ा कारण जंगलो की अंधाधुन कटाई है जिससे ना सिर्फ प्राकृतिक आवासों का विनाश होता है बल्कि वायु प्रदुषण, तापमान में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन भी तेजी से बढ़ता है। भारत देश विकास, शहरीकरण और तकनिकी क्षेत्र में आगे तो बढ़ रहा है, पर इसके दुष्परिणामों के रूप बायोडायवर्सिटी लॉस जैसे संकटों से भी गम्भीर रूप से जुझ रहा है। वनों की कटाई का मुख्य कारण कृषि विस्तार है, जैसे-जैसे जनसँख्या में वृद्धि हो रही है, संसाधनों और भोजन की मांगों की भी दर बढ़ती जाती है जिसको पूरा करने के लिए घनें जंगलो को काटकर उसे कृषियोग्य भूमि में परिवर्तित कर दिया जाता है जो बायोडायवर्सिटी लॉस का बहुत बड़ा कारण बनता है।

2. जलवायु परिवर्तन

वर्तमान समय में भारत में जलवायु परिवर्तन के प्राभावों को अनदेखा नही किया जा सकता है, ग्लोबल वार्मिंग, वैश्विक तापमान में वृद्धि और बदलते मौसम के पैटर्न जैव विविधता को अस्त-व्यस्त कर रही है, जिससे कई प्रजातियां हमेशा के लिए विलुप्त गई है और कई विलुप्ति के कगार पर खड़ी है। बहुत-सी प्रजातियां ऐसी होती है जो तापमान में परिवर्तन या वृद्धि सह नही पाती है और यह संवेदनशील प्रजातियां अपने अस्तिव को खो देती है। ऐसे ही बाढ़, सुखा, ग्लोरीयर्स के पीघलने से एक स्वस्थ्य जैव विविधता का विनाश हो जाता है।

3. जल, वायु और मृदा प्रदुषण 

जल, वायु और मृदा प्रदुषण प्रजातियों के निवास स्थान का विनाश कर रही है साथ ही प्रजातियों के भविष्य को भी खतरे में डाल रही है। औद्योगिक अपशिष्टो को झील, नदीयो, तालाबो और समुद्री प्रवाहित करने से यहाँ पर पाए जाने जीवन चक्र का अंसतुलित करती है। रासायनिक अपशिष्ट मछलियों, कछुओं और डॉल्फ़िन आदि को मार देता है ऐसे ही ऑक्सीजन की कमी होने से जलीय जीवो का दम घुटने से मृत्यु हो जाती है. कीटनाशको का अत्यधिक प्रयोग करने से मिट्टी में रहने वाले जीव जैसे केंचुआ, केंचुए, दीमक, और सूक्ष्म जीव मर जाते है जिससे मिट्टी की उर्वरता में कमी आती है.

प्रजातियों का अत्यधिक दोहन 

पेड़-पौधों और पशु प्रजातियों का मनुष्यों द्वारा शोषण बढ़ता ही जा रहा है, जिससे कई प्रजातियाँ विलुप्त हो गए या विलुप्त होने के कगार पर खड़े है। मत्स्य वर्ग की बात करे तो ट्युना, व्हेल और सालमान जैली प्रजातियों की माँग बढ़ने से यह सबसे ज्यादा दोहन हो रहा है। कोयला, और लौह अयस्क वाले खनिजों को प्राप्त करने के लिए भूमि के बड़े क्षेत्र की जरुरत पड़ती है, जो जंगलो को काटकर कृषि योग्य भूमि बनायी है, वनों का विनाश यहाँ की बायोडायवर्सिटी लॉस को बढ़ावा देती है।

मनुष्यों की कामना अंधी कामना को पूरी करने के लिए जैसे- हाथी के दांत के और अन्य कीमती वस्तुओं को पाने के लिए जीवों को मारना, अपनी मनोरंजन के लिए जंगली जानवरों को पालना, सांप के मांस और खाल के लिए उनका शोषण करना, बाज का शिकार और कई पक्षियों को सजावट के रूप में पिंजड़े में रखना आदि कर्मकाण्ड कर रहे है, जिसके पीछे की विनाशकारी परिणामों को अनदेखा करने में भी सफल हो रहे है, परन्तु यह लापरवाही ज्यादा समय तक नहीं टीक पाएगी क्यूंकि एक जीव का विलुप्ती पूरी पारिस्थितिको तंत्र को अस्त-व्यस्त कर देती है फिर यह कैसे संम्भव हो सकता है इतनी सारी प्रजातियों का विनाश होने के बावजूद भी सुरक्षित भविष्य की कामना किया जा सकता है.

गैर-देशी प्रजातियों का आगमन

यह विदेशी प्रजातियाँ मनुष्यों द्वारा या किसी अन्य कारण से भारत मे प्रवेश कर जाती है। गैर-देशी प्रजातियाँ अक्सर स्थानिय प्रजातियों की कीमत पर पनपती है, यह दुनियाभर के जैव विविधता के लिए बड़े खतरे रूप में मौजूद है। स्थानीय प्रजातियों और गैर-देशी प्रजातियों में संसाधनों की प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती है, जिसमें स्थानीय प्रजातियों को ज्यादा नुकसान होता है। उदा०- लौटाना (Lantana Camara) यह सजावटी पौधे के रूप में फ्रांस से भारत लाया गया था अब यह पौधा झाडियों के रूप में फैलता है और अन्य पौधों को बढ़ने नहीं देता है। ऐसे ही जलकुम्भी, नीलगिर अफ्रीकी घास, पार्टीनियम हाइडेरोफोरस, आदि गैर-देशी प्रजातीया पाई जाती है जो स्थानीय प्रजातियों के लिए खतरा बन गई है.

बायोडायवर्सिटी लॉस के दुष्परिणाम 

बायोडायवर्सिटी लॉस के दुष्परिणामों को ना सिर्फ अन्य जीव-जन्तुओं को सामना करना पढ़ रहा है बल्कि मनुष्यों के भविष्य को भी खतरे में डाल रहा है। इसके दुष्परिणाम बहुत गम्भीर और विनाशकारी होते हैं यह पर्यावरणीय नुकसान के साथ-साथ मनुष्य के स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और जीवन प्रणाली को भी प्रभावित करता है। आइये बायोडायवर्सिटी बॉस के मुख्य दुष्परिणामों को जानते है,

1. पारिस्थतिकी तंत्र का संतुलन

पारिस्थतिकी तंत्र मे हर एक प्रजाति एक-दुसरे से जुड़ी हुयी होती है, किसी एक प्रजाति के विनाश अन्य सभी प्रजातियों को प्रभावित करता है, जैसी ही एक प्रजाति खत्म होती है तो पर्यावरण की खाद्य-श्रृंखला (Food chain) असंतुलित हो जाती है जिसका प्रभाव मानवआबादी पर भी पड़ता है।

2. खाद्य-श्रृंखला में कमी

जैव विविधता खाद्य श्रृंखला का आवश्यक घटक माना जाता है, क्योंकि यह फसल, पशुधन खेती और परागण जैसी सेवाओं के लिए आनुवांशिक संसाधन प्रदान करती है, बायोडायवर्सिटी लॉस में ऐसे बहुत से कीट विलुप्त हो जाते है जैसे मधुमक्खियाँ आदि तो फसलें भी कम होने लगती है। जैव विविधता में कमी कृषि उत्पादकता में गिरावट लाती है जिससे भुखमरी, स्वास्थ्य समस्या और जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा मिलता है।

3. सांस्कृतिक हानि

भारतीय जैव-विविधता दुनियाभर में अपने अनूठे और आकर्षक रूप के लिए जाना जाता है। जो यहाँ के लोगों और अन्य समुदायों को सांस्कृतिक और अध्यात्मिक रुप से जोडे रखती है। प्राचीन भारत प्रकृति में पाए जाने पेड़-पौधों, जीव-जन्तुयो आदि को पुजनीय मानता है और उनके आधिकारों का सम्मान करता है। वर्तमान समय में भारत की जैव-विविधता की स्थिति दयनीय होती जा है जो हमारी सांस्कृति की जड़ों को कमजोर कर रही है यह ना केवल पर्यावरण संकट के लिए जिम्मेदार बल्कि सांस्कृतिक विरासत को भी संकट में डाल रहा है।

3. मानव स्वास्थ्य में गिरावट

कई ऐसी जड़ी-बूटियां और पेड़-पौधे पाए जाते है जो मानवों को दवाइयाँ प्रदान क़राती है। नई दवाइओं और होम्योपैथिक उपचार में जैव-विविधता महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बायोडायवर्सिटी लॉस के वजह से नई दवाईयों का विकास में गिरावट आ सकती है, जिसका सीधा प्रभाव मानव स्वाथ्य पर पड़ेगा।

4. आर्थिक नुकसान

बायोडायवर्सिटी पर्यावरण के साथ-साथ आर्थिक व्यवस्था को प्रभावित करता है, जैव विविधता कृषि, वानिकी, मत्स्य पालन, मधुमक्खी पालन आदि की उत्पादकता और स्थिरता को कम रह कर देती है, जिससे आर्थिक क्षति का भारी नुकसान उठाना पड़ता है.

बायोडायवर्सिटी लॉस (जैव विविधता क्षय) के कारण हम अपने प्राकृतिक धरोहर को खो रहे है.
Head-on with the king- a majestic tiger strides through Rajasthan’s dry summer wilds.

 

समाधान और संरक्षण के उपाय

बायोडायवर्सिटी लॉस का समाधान और संरक्षण के लिए निम्मलिखित उपायों पर काम किया जा सकता है,

1. जंगलों की कटाई

जंगलों की अंधाधुन कटाई जैव-विविधता के नुकसान को सबसे ज्यादा बढ़ाता है। पेड़ो की कटाई रोकने के साथ-साथ जंगलो को पुनर्स्थापित करने की आवश्यकता है। इससे वन्य-जीवो को आवास स्थान तो मिलेगा ही साथ ही जलवायु परिवर्तन से लड़ने में भी सहायता मिलेगी।

2. संरक्षण क्षेत्रों का विस्तार

संरक्षित क्षेत्र जैसे राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य, बायोस्किएर रिजर्व आदि क्षेत्र की संख्या को बढ़ाने और इनकी क्षेत्रफल का विस्तार करने की आवश्यकता है संराक्षत क्षेत्रों में मानवीय गतिविधियों को सिमित करने की जरूरत है, जिससे वन्य जीवो को आवास प्रदान होगा और बायोडायवर्सिटी लॉस को रोका ला सकता है ।

3. जागरुकता और शिक्षा

वर्तमान समय में शिक्षा और जागरुकता के माध्यम से मानवों को जैव विविधता के महत्व के प्रति सशक्त बनाना अत्यन्त आवश्यक है। मानवों को स्कूलों, गांवों और शहरों में जैव-विविधता के महत्व को समझाना चाहिए और स्थानीय समुदाओं और युवाओं को जैव-विविधता संरक्षण में भागीदारी भी लेनी चाहिए। जब लोग पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझेंगे तभी पर्यावरण के साथ मिलकर विकास करने में समर्थवान हो पाएंगे।

4. प्राकृतिक संसाधनों का संयमित उपयोग

बढ़ती आबादी संसाधनों की मांग को भी बढ़ा रही है। हर किसी को पर्याप्त संसाधनों से अधिक की इच्छा रहती है, यही विचार पृथ्वी को विनाश कर रहा है। खेती मस्त्य पालन और जंगलो से संसाधनो लेते समय पर्यावरण के संतुलन को भी ध्यान रखना चाहिए. मछलियों के अवैध व्यापार, वनों की लकड़ियों और पशुधन के लिए खेती को नियंत्रित करने की जरुरत है साथ ही सतत विकास हेतु जैविक खाद, एको-फ्रेंडली उत्पाद और पुनः उपयोग को बढ़ावा देनी चाहिए.

निष्कर्ष : भारत के बायोडायवर्सिटी लॉस को देखने पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि तत्काल में एक बहुआयमी और दूरदृष्टिकोण  की आवश्कता है। यह समस्या न केवल पर्यावरणीय समस्या नहीं है बल्कि यह हमारे भविष्य पर भी प्रश्न उठाता है। हमारी अभी की लापरवाही आने वाले पीढियों को एक बिगड़ी हुयी दुनिया सौंपकर जाएगे। जरूरत है अब सामूहिक प्रयास, नितियो के निर्माण शिक्षा और व्यवहार में बदलाव लाने की

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