हम अपने आस-पास मौसम के बदलते असमान्य प्रभाव को आसानी से देख सकते है। प्रतिदिन भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसम घटनाएं जैसे कि भारी तुफान, बाढ़ की हबाही या असामान्य गर्मी आदि हमें सुनने या पढ़ने को मिल जाता है जो जलवायु परिवर्तन का दुष्परिणाम है। इस लेख में हम इस वैश्विक खतरे का कारण, प्रभाव और समाधान पर चर्चा करेंगे.
Extreme Weathered Event या चरम मौसम घटनाएं, वह प्राकृतिक घटनायें होती है जो किसी स्थान के औसत मौसम की तुलना में असमान्य और कही अधिक तीव्र होती है। जैसे अत्यधिक गर्मी, अचानक बाढ का आना, भारी तूफान, सुखा, अत्यधिक ठण्डी लहरें, बादलों का फटना आदि। मानवों द्वारा प्रेरित जलवायु परिवर्तन चरम मौसम घटनाओ का गमन करता है.
वायुमण्डल में ग्रीनहाउस गैसों की सघनता लगातार बढ़ रही है, जब कार्बन-डाई-ऑक्साइड, मीथेन और अन्य ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा वायुमंडल बढती है तो यह गैसे वायुमंडल में आवरण के समान कार्य करने लगती है और यह पृथ्वी की गर्मी को वायुमण्डल में ही रोक लेती है जिससे वायुमंडल और पृथ्वी की सतह के आस पास का वातावरण गरम होने लगता है जो जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक संकट के रूप हमारे सामने आता है।
पृथ्वी के बढ़ते तापमान के कारण हवाओं के साथ-साथ समुद्र का भी तापमान बढ़ाता है जिससे समुद्र का वाष्पोत्सर्जन ज्यादा होता है और जो तटीय इलाको में अत्यधिक वर्षा और भारी तूफान का कारण बनता है. तापमान के बढ़ने से ग्लाशियर तेजी से पिघल रहा है और समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है यह सभी प्रभाव चरम मौसम की दशा को गम्भीर रूप से प्रभावित करता है।
जलवायु परिवर्तन से चरम मौसम घटनायों को कैसे बढ़ावा मिलता है?
पृथ्वी का बढ़ता तापमान मौसम के पैटर्न को प्रभावित करता है जिससे स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन और चरम मौसम घटनाये एक दुसरे से जुडी हुई है. तापमान में लगातार वृद्धि के कारण लू, सुखा और जंगलों में आग लगने की घटनाएँ घटित रही है। ग्लेश्यिर के पीघलने से कई नदियों में अचानक से बाढ़ आ जाती है जिससे तटवर्ती इलाके में रहने वाले लोग बेघर और कई बार जान-माल की हानि भी होती है।
समुन्द्र का जल स्तर बढ़ने से वहाँ की हवाएं तेज हो जाती है और तटीय इलाकों में रहने वाले लोगो को भारी तुफानों का सामना करना पड़ता है। साथ ही समुन्द्र की गर्म हवाए नमी को ज्यादा सोखती है जो अधिक और तेज बारिश का कारण बनता है। गर्म वातावरण जंगल की भूमि और पेड़-पौधो, झड़ियो और घास को सुखा देती है, पेड़ की लकड़ी जलाऊ लकड़ी बन जाती है जो जगंल की आग को और भी बद-से-बदतर बना देती है जिनका परिणाम बहुत भयावह रूप में हमारे सामने आता है।
गर्म वातारवण में नमी ज्यादा होने के कारण तापमान में गिरावट होती है जिससे निचले और रेखांशीय स्थानों पर तापमान बहुत कम या शून्य से नीचे हो जाता है जिसकी वजह से वहां रहने वाले लोगो को अत्यधिक ठण्ड और बर्फीले तुफानों का सामना करना पड़ता है।
बारिश में असामनता होने के कारण फसलो पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है आशंका यह जताई जा रही है कि जलवायु परिवर्तन को रोका या कम नही किया गया तो अकाल और भुखमरी जैसे बदतर हलातों से गुजरना पड़ेगा. अत्यधिक वर्षा या बहुत कम वर्षा दोनों ही फसलो को उगाने के लिए अनुकूल स्थिति नही होती है. यह प्राकृतिक घटनाये मानव निर्मित संकट बन गई है जो खाद्य और आर्थिक सुरक्षा को खतरे में डाल रही है।
जानिए चरम मौसम घटनाओ पर रिपोर्ट क्या कहते है?
1. IPCC Sixth Assessment Report (AR6), 2021–2023 के अनुसार, पिछले 100 वर्षों में हीटवेव की बारंबारता और तीव्रता में स्पष्ट वृद्धि हुई है. भारत सहित दक्षिण एशिया में भी भारी वर्षा और बाढ़ की घटनाएं अधिक सामान्य और गंभीर होती जा रही हैं। इस जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण मानवीय गतिविधियाँ है जो ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करते है.
2. State of India’s Environment Report – 2024 के अनुसार, 2023 में भारत में 334 दिनों तक चरम मौसम की घटनाएं देखी गई है यानी कि लगभग हर दिन कोई न कोई राज्य चरम मौसम की घटनायो से प्रभावित हुआ। इसके वजह से 3,287 मौतें, 19000 घर नष्ट हुए और 2.2 मिलियन हेक्टेयर तक फसलें बर्बाद हुईं। भारत के राज्य जैसे असम, बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड सबसे ज्यादा चरम मौसम की घटनाओं से प्रभावित होते है.
3. World Meteorological Organization (WMO), State of Global Climate Report 2023 के अनुसार, भारत 2024 में अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा है, वर्ष का औसत तापमान 0.65 डिग्री सेल्सियस सामान्य से ज़्यादा रहा है. 2024 की गर्मी न सिर्फ तीव्र थी बल्कि लगातार कई महीने तक बनी रही जिसकी वजह से देश में लगभग 44,000 लू लगने (Heatstroke) के केस और 450 से अधिक मौतें दर्ज हुईं. रिपोर्ट का कहना है कि एशिया में यह वैश्विक औसत से तेज़ी से बढ़ रही एक वास्तविक आपदा बन चुकी है।
FAQs (सबसे ज्यादा पूछे गए सवाल)
क्या हम चरम मौसम की घटनाओं को रोक सकते हैं?
नहीं, हम चरम मौसम की घटनाओ को पूरी तरह से रोक नही सकते है लेकिन इन घटनाओ को कम जरुर किया जा सकता है. ऐसा इसलिए है क्योकि कुछ घटनाये पूरी तरह प्राकृतिक होती है जैसे कि भूकंप या ज्वालामुखी विस्फोट इनको रोकना असंभव है, वही जलवायु परिवर्तन मानवजनित गतिविधियों से उत्पन्न हुआ है जैसे जीवाश्म ईंधन को जलना, जंगलो की कटाई आदि जो मौसम चक्रों को बुरी तरह प्रभावित करते है, जिससे ज्यादा बारिश, अधिक गर्मी, सूखा, बाढ़ जैसी घटनाएं अधिक तीव्र हो गई हैं। मनुष्य अपने गतिविधियों और प्रकृति के प्रति जागरूकता बढ़ाकर इसके असर को काफी हद तक कम कर सकता है।
दुनिया भर में चरम मौसम की घटनाओं के उदाहरण क्या हैं?
चरम मौसम की घटनाये दुनिया भर में तेजी से बढ़ रही है जो जलवायु परिवर्तन की ओर इशारा करती है. इसका उदहारण अत्यधिक गर्मी, बाढ़, सूखा, तूफान, जंगल की आग और अत्यधिक ठंड के रूप में देख सकते है।
भारत में सबसे अधिक चरम मौसम कहां है?
भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसम घटनाएं सबसे अधिक कुछ विशेष राज्यों और क्षेत्रों में अलग-अलग प्रभावों को लगातार देखी जा रही हैं, जहाँ तापमान, बारिश, सूखा या तूफान का असर अधिक तीव्र होता है।
उत्तर-पश्चिम भारत के राज्यों में जैसे राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली में चरम गर्मी और लू (Heatwaves) का लगातार बढ़ना, पूर्वोत्तर भारत राज्य जैसे असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश में भारी बारिश और बाढ़ का आना, महाराष्ट्र और मध्य भारत में अनियमित मानसून और सुखा पड़ना, हिमालयी क्षेत्र जैसे उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर में भूस्खलन, अचानक बाढ़ और बर्फीले तूफानों का आना आदि.
क्या आम नागरिक अभी भी कुछ कर सकता हैं?
हाँ बिल्कुल, आम नागरिक अभी भी बहुत कुछ कर सकता है बल्कि इस समस्या का मूल समाधान पर ध्यान देने का यही सही समय है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन और चरम मौसम की घटनाएं अब कोई दूर की बात नही है और इनके प्रभावों को अनदेखा नही किया जा सकता है. आम नागरिक हरित जीवनशैली को अपनाकर, स्कूल, परिवार और समाज में जलवायु परिवर्तन के विषयो पर चर्चा करके, सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करके, ऑनलाइन या ऑफलाइन पर्यावरण अभियानों से जुड़कर और जागरूपता बढाकर चरम मौसम के प्रभाव को कम करने में योगदान दे सकता है.
निष्कर्ष: बिना मौसम बारिश कोई संयोग की बात नही बल्कि Extreme Weather Events का हिस्सा हो सकता है जो मानव जीवन, अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरा बन चुका है. यह समस्या कोई प्राकृतिक समस्या नही बल्कि मानव निर्मित वैश्विक स्तर की संकट का रूप ले लिया है. इसके समाधान का दावित्व केवल सरकार या वैज्ञानिकों का नही है बल्कि हर नागरिक को अपने दायित्व को समझकर और साथ मिलकर सामना करने से ही संभव है.