हम सभी जानते है कि जलवायु परिवर्तन पृथ्वी के विनाश के रूप में दुनिया के सामने खड़ी है इसके दुष्परिणामों को पूरी तरह रोका नही जा सकता है हालाँकि इनको कम जरुर किया जा सकता है. इस महाविनाश के प्रभावों को कम करने के लिए हमें नए तकनिकों के विषय पर विचार करने की आवश्यकता है जो पर्यावरणीय स्थिरता को साथ लेकर तकनीकी क्षेत्र में आगे बढ़ने का अवसर दे। Green AI एक ऐसी आन्दोलन या नवाचार की शुरुआत हो सकती है जो इस समय पर्यावरणीय समस्या का समाधान खोजने की दिशा मैं एक बेहतरीन और ठोस है कदम बढ़ाने में साबित हो सकता है। इस लेख में हम जानेंगे कि 2050 तक ग्रीन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भविष्य कैसा रहेगा और इसको व्यवहार में लाना कितना आवश्यक है?
Green AI क्या है?
Green AI का मतलब होता है कि ऐसी आर्टिफिशियल इंटेसिनेंस (AI) तकनीकों और मांडलों को विकसित करना और इस्तेमाल करना जो ऊर्जा की कम खपत, कम कार्बन उत्सर्जन और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार हो।
हालाँकि, Green AI को व्यवहार में लाना चुनौतीपूर्ण विषय हो सकता है. इसको लाने के लिए एआई और मशीन लर्निंग के साथ-साथ पर्यावरण विज्ञान में भी विशेषज्ञता आवश्यकता होती है लेकिन जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन की वास्तविकता बढ़ती जा रही है इस विशेषज्ञता की माँग और भी ज़रूरी होती जा रही है। इसके लिए हमें सबसे पहले इसके सिद्धांतों के बारे में अधिक जागरूकता और समझ बढ़ाने की ज़रूरत है। जिससे ऊर्जा दक्षता, पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास का संतुलन बना रहे.
भविष्य के लिए Green AI क्यों आवश्यक है?
आज के समय में इंस्टग्राम स्क्रॉल करना, यूट्यूब पर विडियो देखना और ChatGPT का इस्तेमाल करने जैसी रोजमर्रा की क्रिया कलाप से ग्रीनहाउस उत्सर्जन तेजी से बढ़ रहा है। जिससे वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है.
पारंपरिक AI मॉडलो जैसे ChatGPT या बड़े भाषा मॉडल (LLP) को ट्रेन करने में बहुत ज्यादा बिजली और कम्पूटरिंग पावर लगती है जिससे कार्बन फुटप्रिंट में वृद्धि होती है. एक घंटे तक यूट्युब वीडीयो देखने से लगभग उतना ही कार्बन-डाई-ऑक्साइड उत्सर्जन हो सकता है जितना एक SW LED बल्ब को 6 घंटे तक जलाने पर होता है। इनसे होने वाला कार्बन उत्सर्जन भले ही कम होता है पर यह भी वैश्विक उत्सर्जन का हिस्सा है।
IDC (International Data Corporation) 2022 में एक रिपोर्ट में बताया कि वैश्विक एआई में सर्च (AI Searches) 2023 के अंत तक आधा ट्रिलियन डॉलर से आगे तक पहुंच जाएगा. इससे पता चलता है कि AI विकास सेवाओं की माँग तेज़ी से बढ़ रही है जो पर्यावरण के लिए बहुत हानिकारक होती है.
बहुत-सी कंपनिया या व्यवसाय ऐसी एआई तकनीक के रुपों की तलाश कर रही है जो पर्यावरणीय नुकसान को बहुत कम और परिचालन दक्षता में अग्रणी हो। Green AI एक ऐसी तकनीक है जो कंपनियों को ना केवल लागत और समय बचाने में मदद करती है बल्कि पर्यावरण स्थिरला को भी पूरा करने में सक्षम है। यही कारण है कि Green AI के प्रति कम्पनियों और व्यवसायों में मांग की बढ़ोत्तरी हो रही है.
भविष्य में Green AI का महत्व
Green AI के लाभ मुख्य रूप से ऊर्जा दक्षता, सतत विकास के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी होती है जिसे हम विभिन्न तथ्यों से समझेंगे:
1. कार्बन उत्सर्जन में कमी –
Green AI पारम्परिक एआई की तुलना में कम ऊर्जा की खपत करता है। ग्रीन कंप्यूटिंग समाधान ऊर्जा कुशल हार्डवेयर और अनुकूलन एल्गोरिदम का उपयोग करता है जिससे कार्बन उत्सर्जन में कमी आती है। उदाहारण- Microsoft के सस्टेनेबल AI प्रोजेक्ट ने कुछ क्लाउड ऑपरेशन में कार्बन डाय-ऑक्साइड उत्सर्जन को 90% तक घटा दिया जो जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए अच्छा कदम साबित होता है।
2. ऊर्जा की खपत की कमी-
Green AI एल्गोरिदम को इस प्रकार डिजाइन किया जाता है जिससे वे कम बिजली का उपयोग करे जो डेटा सेंटरो की बिजली खपत और ऑपरेटिंग लागत को कम करने में मदद करती है। उदा- ऑप्टिमाइन्ड मॉडल ट्रेनिंग जैसे प्रूनिंग, मात्राकरण से बड़े AI मॉडल की बिजली खपत को लगभग 40-50% तक कम किया जा सकता है।
3. सतत विकास
Green AI ना केवल पर्यावरणीय प्रभाव को कम करती है बल्कि संसाधानों की दक्षता को भी बढ़ावा देती है। Green AI की कम संसाधनों वाले क्षेत्रों में भी लागू करना आसान है जिससे डिजीटल असामनता में कमी आती है। यह लो-पवर चिप्स और सस्टेनेबल डेटा सेंटर के विकास की बढ़ाया देता है। जिससे कम्पनियाँ भविष्य के पर्यावरणीय नियमों और कार्बन टैक्स से बच जाती है। इस प्रकार Green AI एक ऐसे मार्ग का नेतृत्व करती है जहाँ पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास भी सम्भव हो पाता है।
4. संसाधनों का बेहतर उपयोग-
Green AI संसाधनों का जैसे जल, ऊर्जा और अन्य कच्चे माल को आधिक कुशलता से उपयोग करता है जिससे उनके अनुकूलन में मदद मिलेगी। डेटा सेंटरों को चलाने जीवाश्म ईंधन की जगह सोलर, विंड या हारड्रो पावर का इस्तेमाल करना पर्यावरण के लिए लाभप्रद साबित होता है।
ऊर्जा दक्षता एल्गोरिदम (Energy-Efficient-Algorithms) का अर्थ होता है ऐसे AI और मशीन लर्निंग एल्गोरिदम विकसित करना जो कम कंप्यूटिंग संसाधन के साथ-साथ कम संसाधन का इस्तेमाल करके भी अच्छा प्रदर्शन करे दे| उदहारण- Google के शोध ने बताया कि BERT मॉडल को प्रूनिंग और परिमाणीकरण से ट्रेनिग और इन्फरेल के दौरान बिजली की खपत 40% तक कम हो गई जबकि एक्यूरेसी में सिर्फ 1% का ही अंतर दिखा. ऐसे ही डेटा सेटरों को ठण्डा करने के लिए वॉटर-एफिशिएंट कूलिंग सिस्टम के इस्तेमाल से लाखों लीटर चाची की खपट को बहुत कम किया जा सकता है।

पारम्परिक AI और पर्यावरण संकट
परंपरागत AI (Traditional AI) यानी बड़े पैमाने पर डेटा प्रोसेसिंग और मॉडल ट्रेनिंग करने वाली AI तकनीके उच्च ऊर्जा की खपत व कार्बन उत्सर्जन करती है जिससे पर्यावरण की भारी नुकसान उठाना पड़ता है उदाहरण से समझते है:
“Navigating New Horizons” रिपोर्ट के अनुसार AI को शक्ति प्रदान करने वाले माइक्रोचिप्स और प्रोसेसर मे Rare Earth Elements (दुर्लभ मृदा तत्व) पाए जाते है जैसे- नियोडिमियम, टैटलम, कोबाल्ट और लिथियम आदि।
इन तत्वों को प्राप्त करने के लिए भारी मात्रा मे खनन की जाती है जिसके दौरान टॉक्सिक रसायन व धातुये निकलती है जो आस-पास की नदियो या भुजल को दुषित करती है। यह ही नही खनन के लिए बड़े पैमाने पर जंगलो को भी काटा जाता है जिससे कई प्रजातियो का प्राकृतिक आवास नष्ट हो जाता है.
Rare Earth Mining के लिए भारी मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है जिसको चलाने के कोयले से चलने वाली बिजली का उपयोग किया जाता है जो लगभग 75 टन तक कार्बन डाय-ऑक्साइड का उत्सर्जित करता है।
“कांगो की बात करे तो कागो (DRC) दुनिया का सबसे बड़ा कोबाल्ट उत्पादक है। कोबाल्ट का इस्तेमाल AI माइक्रोचिप, बैटरिया और अन्य इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसों को बनाने में किया जाता है। कांगो की यही फोबाल्ट खनन गोरिल्ला और अन्य लुप्तप्राय प्रजातियों के रहने के स्थान पर खतरा पैदा कर दिया है।अतः Rare Earth Elements का खनन अक्सर पर्यावरण के लिए बेहद विनाशकरी साबित होता है।
Carbon Emissions
डेटा सेंटर से निकलने वाला कार्बन डाय-ऑक्साइड जलवायु परिवर्तन को सीधे बढ़ाया देता है। बड़े AI माडल को ट्रेन करने में लाखों किलोवाट-घंटा बिजली खपत होती है, जिससे भारी मात्रा में कार्बन डाय-ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। उदाहरण के लिए GPT-3 को ट्रेन करने के लिए लगभग 1,287 MWh बिजली लगती है जिससे लगभग 550 टन CO2 उत्सर्जित होता है जोकि 100 से ज्यादा घरों की एक साल की बिनली खपत की दर के बराबर होती है।
E-waste
GPU, सर्वर और नेटवर्किंग डिवाइस का जीवनकाल बहुत कम समय का होता है, जिसको अपग्रेड किया जाता है अपग्रेड करने के दौरान पुराना अधिक मात्रा में इलेक्ट्रॉनिक्स कचरा निकलता है जिससे हजारो टन ई-वेस्ट व पारा और शीशा जैसे खतरनाक पदार्थ निकलते है। उदाहरण के लिए AI प्रोजेक्ट में हर 2-3 साल में हार्डवेवर अपग्रेड किया जाता है जो हजारों टन E-Waste के लिए जिम्मेदार है.
डेटा सेंटर का पानी उपयोग
डेटा सेंटरों के निर्माण और चलाने के दौरान बिजली के उपकरणों को ठंडा करने के लिए पानी का इस्तेमाल किया जाता है। एक अनुमान के अनुसार 2027 तक वैश्विक रूप से AI – संबंधित बुनियादी ढाँचा अनुमानतः लगभग 4.2 से 6.6 बिलियन घन मीटर पानी की खपट कर सकता है जोकि डेनमार्क (लगभग (लाख आबादी वाला) की वार्षिक खपत का लगभग 4 से 6 गुना है।
इस अनुमान को खासकर तब चिंताजनक समझा जाता है जब एक चौथाई मानवता के पास पहले से ही स्वच्छ जल नही पहुँच रही है। वही Google और Microsoft की बात करें तो इनकी डेटा सेंटरों ने 2022 में लाखों लीटर मीठा पानी केवल सर्वर कुलिंग के लिए इस्तेमाल किया जो वर्तमान समय के जलवायु परिवर्तन और जल संकटो जैसे बढ़े करणों में शामिल है.
FAQs (सबसे ज्यादा पूछे गए सवाल)
क्या Green AI ही AI का भविष्य है?
हाँ, बहुत हद तक यह कहा जा सकता है कि Green AI ही AI का भविष्य है, क्योंकि आने वाले समय में हम देख पा रहे है कि केवल तकनीकि विकास से आने वाले समय सुरक्षित भविष्य की कल्पना संम्भव नहीं है ख़ासकर तब जब दुनिया के सामने जलवायु परिवर्तन, वैश्विक जल संकट, Extreme weather event आदि जैसी समस्याए खड़ी हो. इसलिए AI तकनिक का विकास सस्टेनेबिलिटी को ध्यान रखकर ही किया जा सकता है।
Green AI को व्यवसाय में कैसे लागू किया जा सकता है?
Green AI को व्यवसाय में लाने के लिए ऐसे AI तकनीकों का इस्तेमाल करना चाहिए जो कम ऊर्जा व संसाधन का कम उपयोग करती है। उदा – ऊर्जा-दक्ष एल्गोरिदम, नवीकरणीय ऊर्जा आधारित डेटा सेंटर और पूर्व प्रशिक्षित मॉडलों का उपयोग करके और टिकाऊ एआई विकास और तैनाती के लिए मानक प्रथाओं का पालन करके Green AI को लागू कर सकते है.
Green AI पर काम करने वाली अग्रणी कम्पनियां कौन-कौन सी है ?
Green AI पर काम करने वाली अग्रणी कम्पनियों का लिस्ट कुछ इस प्रकार है- Google (DeepMind), Microsoft (AI for Earth), Amazon (AWS), Meta (डेटा सेंटर ऑप्टिमाइजेशन) आदि कम्पनियों शामिल है। नए कम्पनियों में Verdigris Technologies (USA), Kobold Metals, Clarity AI, Wadhwani AI(Mumbai), Indika AI शामिल है।
निष्कर्ष: Green AI अब केवल विकल्प मात्र नही है बल्कि वर्तमान समय में यह आवश्यकता बन गई है. तेज़ी से बढ़ते AI उपयोग के बीच अगर हम ऊर्जा, उत्सर्जन, और टिकाऊपन जैसे गंभीर विषयो को शामिल नहीं करेंगे तो तकनीकी प्रगति का परिणाम पर्यावरण को भुकतना पड़ सकता है। अब जरूरत है एक ऐसा AI पारिस्थितिकी तंत्र को बनाने की जो परिमार्जित मॉडल, स्मार्ट हार्डवेयर, Renewable Integration और पारदर्शिता से बनी है और जो बुद्धिमान होने के साथ-साथ धरती के प्रति जिम्मेदार भी हो.
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